CAREEREarn Passive IncomeEye OpenerOpportunities

गणेशजी रेस जीत गए।

 

गणेश जी माता पार्वती और भगवान शिव के छोटे पुत्र है। उनके बड़े भाई कार्तिकेय के साथ एक बार उनकी रेस में प्रतिस्पर्धा हुई। पूरा घटनाक्रम कुछ इस प्रकार है।

गणेशजी के कैलाश पर आते ही सभी तरह की व्यवस्थाएं सुधर गई। उनके काम की और बुद्धि की प्रशंसा कैलाश पर सभी करते। एक समय जब देवराज इंद्र कैलाश पर गए, तब यह सब देखकर उन्होंने माता पार्वती और भोलेनाथ से कहा की गणेशजी ही प्रथम पूजनीय है। उनकी बुद्धि और गुण की योग्यता संसार में किसी और में नहीं है। इसलिए हर पूजा के आरंभ में गणेशजी की पूजा हो, ऐसी देवराज इंद्र ने प्रस्ताव रखा।

देवराज इंद्र के उस प्रस्ताव में भगवान शंकर भविष्य भविष्य में होने वाली एक बहोत बड़ी घटना को भाँप गए।

देवराज इंद्र की बात से सभी सहमत थे। लेकिन माता पार्वती और कुछ और लोगो को यह चिंता भी हुई के इस पर गणेशजी के बड़े भाई कार्तिकेय की क्या प्रतिक्रिया होगी।

कार्तिकेय ने देवराज इंद्र के प्रस्ताव पर प्रश्न किया और भगवान शंकर और माता पार्वती से कहा के प्रथम पूजा का स्थान योग्यता के आधार पर देना चाहिए। और योग्यता की परीक्षा किसी स्पर्धा द्वारा होनी चाहिए।

इस पर माता पार्वती और भगवान भोलेनाथ ने गणेशजी और कार्तिकेय के बीच एक स्पर्धा रखा। दोनों भाइयो में से जो भी संसार (पूरी दुनिया) के तीन चक्कर पहले लगाकर पहले लौटेगा, वो विजेता होगा, और प्रथम पूजा का अधिकारी भी।

महादेव की यह घोषणा सुनते ही नंदी और कैलाश पर दूसरे सभी देवता और अन्य गण श्री गणेशजी के लिए चिंतित हो गए। कार्तिकेय एक कुशल योद्धा और सेनापतिओ में सबसे उत्तम थे। मोर उनका वाहन था। वहीं दूसरी और गणेश जी गजरूप में चूहे पर सवारी करते थे। ऐसे में यह स्पर्धा एक तरफ़ा लग रहा था। गणेशजी पुरे संसार के चक्कर काटने में कार्तिकेय की बराबरी कैसे कर सकते थे ? महादेव की यह घोषणा सुनकर सभी व्याकुल हो उठे।

लेकिन गणेशजी बिलकुल शांत मन से आगे बढे। स्पर्धा को स्वीकार किया और अपने माता पिता से आशीर्वाद लीया। 

स्पर्धा शुरू हुआ। कार्तिकेय तुरंत अपने वाहन मोर पर सवार होकर संसार की तीन बार परिक्रमा करने तेज़ी से निकल पड़े। वहीं दूसरी ओर, गणपति ने जो किया, उससे सभी हतप्रभ रह गए।

उन्होंने अपने हाथ जोड़कर अपने माता पिता की स्तुति की, और तीन बार भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती की परिक्रमा की।

भगवान शंकर, माता आदिशक्ति, नंदी और अन्य सभी ऋषि और देव गण गणेशजी का उत्तर सुनकर बहोत प्रसन्न हुए। भगवान शंकर और माता पार्वती भाव विभोर हो उठे और गणेशजी को ढेर सारा स्नेह और आशीर्वाद दिया।

कार्तिकेय के लौटने पर, गणेशजी को स्पर्धा का विजेता घोषित किया गया।

सीख : यह सत्य है की ईश्वर ही सब कुछ है। ईश्वर ही सारा संसार है। और यह संसार हमें सबसे पहले हमारे माता पिता ही दिखाते है। माता को सबसे पहला गुरु कहा गया है। जिनके आगे ईश्वर भी सदा नतमस्तक रहते है। 

आप सभी को गणेश चतुर्थी की ढेर सारी शुभकामनाएं। विध्नहर्ता श्री गणपति बप्पा आपके सभी विध्नों को दूर करे।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *